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छंटने लगी सुस्ती ः व्यापारी सीजन हेतु तैयार

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इचलकरंजी/ आने वाले माह में दशहरा एवं दिपावली जैसे बड़े त्यौहारों में सूटिंग, शर्टिंग, साड़ी, धोती तथा रेडीमेड़ गारमेंट वस्त्रों में अच्छी ग्राहकी की संभावना को ध्यान में रखते हुये स्थानीय कपड़ा उत्पादक एवं होलसेल व्यापारी, गांरमेंट उद्यमी अपनी तैयारी में लगे है। हाल में कपड़ा बाजार में रेडीमेड ग्राहकी की मांग शुरू हो गई है। गणेशोत्सव के पश्चात आने वाले श्रा(पक्ष में ग्राहकी में नमी के साथ कपड़ा बाजार में अच्छी तेजी की संभावना देखी जा रही है। लबें समय से चल रहा मंदी का दौर खत्म होने का समय आ रहा है, ऐसी बाजार में चर्चा है। लेकीन आज की स्थिती में कपड़ा उत्पादन करने वाले प्लेन पाॅवरलूम के साथ अत्याधुनिक रपियर, एयरजेट कारखानदारों की परिस्थिती बड़ी गंभिर बन चुकी है। यार्न मार्केट की मंदी एवं कपड़े में लेवाली की कमी से कारखनदारो का मजुरी रेट की कमी एवं उत्पादन खर्च का तालमेल नही हो पा रहा है। इसके चलते सभी कपड़ा उत्पादकों का आर्थिक नुकसान हो रहा है। मांग की कमी एवं आर्थिक नुकसान की वजह से आने वाले दिनों में कपड़ा उत्पादको ने अपना उत्पादन आधा या पूरी तरह बंद करने का विचार कर लिया है। पिछले साल में इंडीगो ब्लू की क्वाॅलीटी में सभी व्यापारीयों को अच्छा साथ दिया, मगर अचानक पिछले दो हफ्तो में यार्न मार्कट के घटने से एवं मांग की कमी के साथ इस क्वाॅलिटी में भारी नुकसान हो गया है। पिछले कई सालों में केन्द्र एवं राज्य सरकार कपड़ा घरेलू बाजार एवं विश्व बाजार एवं विश्व बाजार में भारतीय कपड़ा उद्योग पिछड़ रहा है। तथा केन्द्र का हाल ही में एफ डी आय को मंजूरी देने से भारतीय रेडीमेड बाजार को विदेशी ब्राण्डेड बाजार के साथ कड़ी मात्रा में स्पर्धा करनी पड़ेगी। सरकारी नितीयों एवं सरकारी अफसरशाही की मनमानी के चलते भारतीय उद्योग को विदेशी मल्टी बा्रण्डेड उद्योग के सामने टिकना कठीन है, ऐसा कपड़ा नितीगत जानकारों का मानना है। अगर सरकार को एफ डी आय के मंजूरी के साथ भारतीय उद्योग के उत्थान के लिए उचीत निर्णय लेना अति आवश्यक है। दूसरी तरफ कपड़ा निजी जानकारों का मानना है की केन्द्र सरकार का एफ डी आय की मंजूरी देने से भारतीय रेडीमेड उद्योग पर विशेष फर्क नही पड़ेगा क्योंकी विदेशी ब्राण्डेड खरीदी करने वालो की अंदाजन औसत 17% तक है, एवं निम्न शहरी तथा ग्रामीण भाग में रहने वाले औसतन 60% लोग भारतीय कपड़ा खरीदना पसंद करते है। महंगाई के दौर में घर खर्चो के साथ कपड़ा खरीदने में आजकल लोग विचार करते है। इसके चलते हो सकता है, कही विदेशी ब्राण्ड को मार्केट से टक्कर ना लेना पड़े। भारतीय अर्थव्यवस्था का एक काला दाग यह है की औसतन 27% लोेग आज भी अधनंगी व्यवस्था में जी रहे है।

                 

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