पोपलीन व प्रिण्ट में अच्छी डिमाण्ड ः भावों में तेजी
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बालोतरा@ बारिश का इन्तजार है और नजरें आकाश की ओर केन्द्रित है। सावन सुखा जा रहा है लेकिन सभी बेबस है। पानी की वैसे भी कमी, इसके बाद वर्षा का कोई आसार नजर न आने से स्थिति संकटपूर्ण बन गई है। महंगाई की मूसलाधार वर्षा से सभी कोई आकण्ठ डूब गये हैं। बातों के अलावा सभी कुछ महंगा हो गया है। काॅटन पोपलीन में प्रयुक्त ग्रे क्लाॅथ ने भावों की दृष्टि से अब तक का पूर्ववर्ती रिकाॅर्ड तोड़ दिया है। श्रमिकों के भाव ‘पीड़’ अर्थात जरूरत के अनुसार हो गये है। मजदूरों का ट्रेंड बदल गया है अब व भाव जो कहे वे सही है, अन्यथा ‘आपकी इच्छा’ कह कर रूख बदल रहे हैं। मजदूरों का भयंकर तोड़ा है इस बात के ऐसे कामदार वाकिफ है। उन्हें बैठा रहना मंजूर है, पर कम भावों में काम नहीं करेंगे।
इस माहौल से उद्यमी अभ्यस्त हो गये हैं और वे बिना ना-नुकर के लेबर की बात को रखना व्यवसायिक गुर समझते हैं। स्थानीय वस्त्र, रंगाई-छपाई के उद्योग की स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है क्योंकि जितना माल तैयार हो सकता है उतना चालानी हो जाता है। माल की कमी से मांग बरकरार है। ईद व ओणम के कारण लेवाली अच्छी बनी हुई है। पोपलीन व प्रिण्ट आइटमों के मुकाबले सिन्थेटिक वस्त्रों की डिमाण्ड कमजोर नजर आती है। वैसे अब सीजन और गैर सीजन की बात ही नहीं रह गई है।
प्रदूषण के नाम पर उद्यमियों में भय व्याप्त है कि उत्पादन कभी भी बन्द हो सकता है क्योंकि अभी तक सभी स्थितियां सामान्य नहीं बन सकी है। विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार बिठूजा का धुलाई उद्योग के भी बन्द होने के समाचार है। जिस स्थिति में आज का उद्योग चलायमान है, उससे व्यावसायिक सारा परिदृश्य बदल गया है। केश का धारा पूरे वेग से प्रवाहित है। उद्यमी चूंकि सीमित उत्पादन लेने को मजबूर है इसलिए आपसी कम्पीटिशन दृष्टिगोचर नहीं होता है। व्यापारियों को माल की आवश्यकता तुरन्त में है, परन्तु माल चालानी में पर्याप्त समय लग रहा है।
प्रचलित औद्योगिक स्थिति में पर्याप्त सुधार न हुआ हो छोटे उद्यमी अपना अस्तित्व अधिक समय तक कायम न रख पायेगें। युनिट छोटी होने से दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें समय अधिक लगता है और स्व निर्भर युनिटों के मुकाबले लगभग दो रुपये लागत अधिक आती है। इससे उनका बड़ी युनिटों के समक्ष बाजार में टिकना असम्भव हो गया है। बड़े उद्यमी को पूरा फायदा मिल रहा है और मिलना भी स्वाभाविक है। आखिर उन्होंने भी अपनी यूनिटों की स्थापना में बड़ी रकम इनवेस्ट कर रखी है। ऐसे में यदि वे इसका लाभ नहीं उठायेंगे तो छोटों के समक्ष उनको सर्वाइव का संकट आ सकता है।
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