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पटरी पर आने में लगेगा समय आर्थिक सुधारों का दीर्घावधि में दिखेगा असर

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नई दिल्ली/ सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने मंे अभी समय लगेगा। यदि सरकार आर्थिक सुधारों की राह पर अग्रसर रहती है तो दीर्घावधि में इसका असर दिखेगा। सुधारों की प्रतिक्रिया भले ही तत्काल दिखती है लेकिन परिणाम आने में समय लगता है। यही कारण है कि सरकार द्वारा पिछले दिनों जो कुछ आर्थिक सुधार की दिशा में कदम उठाए हैं, उनका सकारात्मक असर अभी औद्योगिक उत्पादन, निर्यात एवं महंगाई पर नहीं दिखा है। अभी सरकार को आर्थिक सुधार की दिशा में कई कदम उठाने हैं। आगामी संसद सत्र में सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने में कितनी सफल रहती है, यह देखना होगा। यदि सत्र सुचारू रूप से चलता है और सरकार लम्बे समय से लम्बित आर्थिक महत्व के विधेयकों को आगे बढ़ाने में सफल हो जाती है तो दीर्घावधि में इसके सफल परिणाम भी आएंगे। सरकार को अभी वस्तु एवं सेवा कर ;जीएसटीद्ध, प्रत्यक्ष कर सहित कई विधेयकों को पारित कराना और अमल में लाना है। यूरोप, अमेरिका सहित विश्व भर में मंदी का असर है इसलिए निर्यात व्यापार कमजोर चल रहा है। घरेलू बाजार में भी औद्योगिक उत्पादों में अपेक्षित मांग नहीं है। इसलिए हाल के सुधारों का असर अभी तत्काल नहीं दिखा है। दीपावली के अवसर पर औद्योगिक उत्पादन एवं निर्यात में गिरावट एवं महंगाई में वृ(ि के आंकड़ों से आर्थिक मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है और यह कहा जाने लगा है कि सरकार ने विगत दिनों आर्थिक सुधार की दिशा में जो कड़े कदम उठाए हैं, उनका उत्साहजनक परिणाम नजर नहीं आया। अर्थव्यवस्था के तीव्र वृ(ि की राह पर लौटने की उम्मीदें दीपावली की पूर्व संध्या पर धूमिल पड़ती नजर आई। सरकारी आकंड़ों में औद्योगिकी उत्पादन और निर्यात में गिरावट तथा खुदरा महंगाई में वृ(ि दर्ज की गई। विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन से सितंबर माह में औद्योगिकी उत्पादन में 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई जबकि एक साल पहले इसी महीने में आईआईपी में 2.5 प्रतिशत वृ(ि दर्ज की गई थी। एक महीना पहले अगस्त 2012 में औद्योगिकी उत्पादन में सालाना अधार पर 2.3 प्रतिशत वृ(ि रही थी। देश के निर्यात व्यापार में भी गिरावट का दौर रहा। एक साल पहले की तुलना में अक्टूबर 2012 में निर्यात में 1.63 प्रतिशत गिरावट आई और व्यापार घाटा 21 अरब डाॅलर की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। आम आदमी को बढ़ती मुद्रास्फीति से कोई राहत नहीं मिली। चीनी दाल सब्जियों तथा कपड़े जैसी जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में बढ़त दर्ज की गई। अक्टूबर में खुदरा मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर 9.75 प्रतिशत पर पहुंच गई। एक महीना पहले यह 9.73 प्रतिशत पर थी। पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक वृ(ि दर घटकर नौ साल के निचले स्तर 6.5 प्रतिशत तक नीचे आ गई। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 5.5 प्रतिशत रही जिससे भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल 2012-13 में वृ(ि दर का अनुमान घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया। योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने सितंबर में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट को निराशाजनक बताया है। अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में सुस्त मांग के चलते निर्यात में लगातार छठे महीने गिरावट दर्ज की गई। अक्टूबर में निर्यात बीते साल की तुलना में 1.63 प्रतिशत घटकर 23.2 अरब डाॅलर रहा। सितंबर में निर्यात 11 प्रतिशत घटा था। अक्टूबर में आयात 7.37 प्रतिशत बढ़कर 44.2 अरब डाॅलर हो गया। यह आयात का पिछले 18 महीने का उच्च स्तर है। इससे व्यापार घाटा 20.96 अरब डाॅलर तक पहुंच गया।

                 

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