बीटी काॅटन पर आपत्तियां भ्रामक
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नई दिल्ली/ बीटी काॅटन के खिलाफ गैर सरकारी संगठनों और दूसरी विशेषज्ञ समितियों द्वारा की गई आपत्तियां काल्पनिक और भ्रामक हैं। इन वर्गों ने अपनी आपत्तियांे में तकनीक के आधार पर कोई तार्किक आंकलन पेश नहीं किया है। अब तक बीटी काॅटन एकमात्र जेनेटिकली माॅडीफाइड फसल है जिसे उगाने की अनुमत्ति दी गई है।
यह जानकारी देते हुए कृषि मंत्री श्री शरद पंवार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीटी काॅटन की खेती शुरू होने के साथ ही गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी विशेषज्ञ समिति और संसदीय स्थाई समिति लगातार इस पर आपत्ति कर रहे हैं लेकिन ये आपत्तियां काल्पनिक और भ्रामक हैं।
आपत्तियों के पीछे कोई मजबूत तकनीकी आधार नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जिसमें मनुष्य या पशुओं की विविधता पर इसके किसी तरह के प्रभाव का पता चलता हो। एनजीओ और समितियां मुख्य रूप से इस पर विरोध कर रही है कि बीटी काॅटन उगाने की अनुमति देने से पहले और इसकी खेती शुरू होने के बाद खेतों में बायोसेफ्टी का समुचित परीक्षण नहीं किया गया।
विरोधियों का यह भी कहना है कि वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए बीटी काॅटन उपयुक्त नहीं है। उनका आरोप है कि इस वजह से ही कुछ क्षेत्रों में फसल बर्बाद होने से किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि बीटी काॅटन को लेकर विवाद होने के बावजूद जमीनी स्तर पर तथ्य है कि पिछले एक दशक में जब से बीटी काॅटन की खेती शुरू हुई है, देश में कपास का रकबा और पैदावार में भारी इजाफा हुआ है। बीटी काॅटन से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है। भारत दूसरा सबसे बड़ा काॅटन निर्यातक देश है। बीटी काॅटन से कीट से बचाव हुआ है और प्रतिशत वर्ष 30 से 60 प्रतिशत तक उपज का नुकसान कम हुआ है। इससे कीटनाशक का उपयोग घटा है।
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