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असली से ज्यादा नकली बिक रही है कोटा डोरिया बुनकरों में नाम पर फर्जी संस्थाएं उठा रही हैं फायदा, बुनकरों की पीड़ा असली कोटा डोरिया की साडि़यां महंगी होने के कारण हर व्यक्ति नहीं खरीदता, इसलिए बाजार में 90 प्रतिशत नकली ही बिकता है।

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कोटा/ असली कोटा डोरिया की साडि़यां बेशक मंहगी बिकती हैं, लेकिन यह भी सच है कि जितनी मांग है, उतनी बन नहीं पाती है। फिर भी बुनकरों को उनकी साड़ी बनाने की मेहनत के मुकाबले में उतने दाम नहीं मिल पाते हैं, इसलिए कोटा डोरिया की साडि़यां नीलाम हों ताकि उसकी ब्रांडिंग हो और नकली कोटा डोरिया बिकना बंद हो। लघु उद्योग काउंसिल आॅफ कोटा, एमएएमई एवं कोटा डोरिया महिला बुनकर संस्थान की ओर से आयोजित सेमिनार में यह पीड़ा बुनकरों ने व्यक्त की। कोटा डोरिया फाउंडेशन संघ के उपाध्यक्ष आबिद मियां ने कहा कि कोटा डोरिया को सालाना टर्न ओवर वर्ष 2005 में जो पांच करोड़ रूपये था, वह जीआई ;ज्योग्राफिकल इंडिकेशनद्ध मिलने के बाद जो गुजरे तीन सालों में 25 करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है। परंतु आज भी बाजार में 250 करोड़ रूपये का नकली कोटा डोरिया बिक जाता है। उन्होंने माना कि असली कोटा डोरिया की साड़ीयां महंगी होने के कारण हर व्यक्ति नहीं खरीदता, इसलिए बाजार में 90% नकली ही बिकता है। विशेषज्ञ श्री शाश्वत पुरोहित ने बताया कि राजस्थान का प्रथम जीआई कोटा डोरिया को मिला था। इसके बावजूद भी नकली कोटा डोरिया पासआउट हो रहा है। इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता की जरूरत है। नकली बिकने के कारण जनता का असली भरोसा उठ जाता है। इसके लिए उन्होंने ई-काॅमर्स एवं ई-ट्रेड अपनाने की सलाह दी। क्या है जीआई जीआई यानी भौगोलिक पहचान। यह एक ऐसा ट्रेड मार्क है, जिसे मिलने के बाद कोई दूसरा उसकी नकल नहीं कर सकता। जो वस्तु जहां बनती है, उस वस्तु के कारण उसकी भौगोलिक पहचान बनती है तो उसे ही जीआई मार्का मिलता है। उदाहरण के लिए बीकानेरी भुजिया। बीकानेर में ही बनता है, उसे दूसरी जगह नहीं बनाया जा सकता। इसी तरह कोटा डोरिया साड़ी कोटा में ही तैयार होती है। इसलिए उसे जीआई मिला है। अगर कहीं दूसरी जगह बनती है, तो वह नकली है। इसकी पहचान के लिए असली कोटा साड़ी पर बुनाई के समय ही धागे से जीआई बुना जाता है।

                 

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