संपादकीय
बड़ी आशाये है 2013 में
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वर्ष 2013 की शुरूआत में रबी की आकर्षक फसल देश के किसानों के घरों में खुशहाली ला सकती है, ऐसी सम्भावना है कि मानसून में विलम्ब होने के बाद अन्तिम चरण में भरपूर मानसून के कारण रबी की फसल अच्छी होगी और इससे आम ग्रामीणों की क्रय शक्ति में भी व्यापाक सुधार होने की सम्भावना है। वर्ष 2013-14 का केंद्रीय बजट अवश्य ही लोकप्रिय होगा, इसमें सन्देह नहीं है लेकिन सरकार इस बजट के माध्यम से अनेक आर्थिक सुधारों का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है तथा बजट से पूर्व ही डीजल को बाजार मूल्य आधारित करने का सरकार निर्णय ले सकती है। सरकार ने केश ट्रान्सफर के माध्यम से अनुदान के रूप में आम आदमी का धन पहुंचाने का निर्णय लिया है, यह अच्छी शुरूआत है लेकिन इस धन का दुरूपयोग गलत कार्यो के लिए नहीं होना चाहिए। अब तक अगर अनुदान का 75 प्रतिशत लाभ ही आम आदमी तक पहुंच पाता है तो केश ट्रान्सफर के माध्यम से निश्चित रूप से यह लाभ बढ़कर 85 से 90 प्रतिशत के स्तर को अवश्य ही छू सकता है। इस योजना के अनुदान के दुरूपयोग की सम्भावना अवश्य ही घट जायेगी लेकिन वर्ष 2013 के दौरान इस योजना के अन्तर्गत संभवतः देश की 8 से 10 प्रतिशत आबादी को ही शामिल किया जा सकेगा जिसकी शुरूआत जनवरी, 2013 में की जा रही है लेकिन वर्ष 2013-14 वित्तीय प्रबंधन की दृष्टि से भी सरकार के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण सि( होगा। एक और सरकार वोट हासिल करने के लिए लोकप्रिय बजट का सहारा ले सकती है। तो दूसरी ओर अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है। क्योंकि राजकोषिय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 प्रतिशत तक लाना चुनौतिपूर्ण होगा। इसके लिए सरकार को स्पेक्ट्रम विनिवेश खर्चों पर नियन्त्रण पर विशेष ध्यान देना होगा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधित निर्णयों का लाभ तो देश को प्राप्त होने में कुछ वर्ष लग सकते हैंै लेकिन वर्ष 2013 के दौरान निश्चित रूप से देश के निवेश वातावरण में सुधार देखने को मिलेगा।
मुद्रा प्रसार दर में गिरावट की शुरूआत हो गयी है और वर्ष 2013 के अन्त तक मुद्रा प्रसार दर घटकर 5.0-5.50 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती हे जिसे रबी के अच्छे कृषि उत्पादन का भी सहयोग मिलेगा। वर्ष 2013 की शुरूआत अथवा जनवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा के साथ ही रिजर्व बैंक ब्याज दर में कटौती के साथ नकद आरक्षित अनुपात में भी कटौती का निर्णय लेकर अर्थव्यवस्था में मौजूद नकद तरलता के संकट को भी दूर करने का प्रयास कर सकता है। इस आशय का संकेत रिजर्व बैंक ने दिसम्बर की समीक्षा बैठक के दौरान दिया भी है। बैंक )ण ब्याज साख दर में कमी तथा पर्याप्त नकद तरलता देश के औद्योगिक वातावरण में और गतिशीलता लाने का प्रयास करेगी जो औद्योगिक विकास दर वृ(ि का कारण बन सकती है। विश्व अर्थव्यवस्था के सम्बंध में जो संकेत प्राप्त हो रहे हैं, इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि वर्ष 2013 के दौरान अमेरिका व यूरोप में धीरे-धीरे मांग में सुधार होगा और इसका लाभ भारत के निर्यात क्षेत्र को प्राप्त होने की सम्भावना है। चीन की श्रम लागत गत कुछ वर्षों के दौरान ही 30-35 वर्ष बढ़ गयी है, और कुशल श्रम की लागत चीन में भारत के मुकाबले दो-तीन गुना तक बढ़ गयी है, इसे देखते हुए जापान जैसे औद्योगिक देश की कंपनीयां अपने उत्पादन का आधार भारत में स्थापित करने पर निर्णय ले चुकी हैं। अतः 2013 भारत के लिए काफी आशापूर्ण नजर आ रहा है।
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