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पंजाब के शाॅल उद्योग में 10-15 प्रतिशत ग्रोथ की सम्भावना

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लुधियाना/ पंजाब ऊनी शाॅल के उत्पादन का प्रमुख केन्द्र रहा है यहां शाॅलों का उत्पादन लघु मध्यम व्यवसाय क्षेत्र में भी बडे+ पैमाने पर होता है। गत एक वर्ष के दौरान ऊनी धागे के मूल्य में भारी वृ(ि तथा यूरोपीय बाजार में व्याप्त आर्थिक मंदी के कारण पंजाब के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वर्ष 2010-11-12 के दौरान शाॅल उद्योग उत्पादन मे 25 प्रतिशत गिरावट देखने को मिली थी लेकिन चालू वर्ष के दौरान 10 से 15 प्रतिशत की दर से उत्पादन बढ़ जाने की संभावना है। इस क्षेत्र में सर्वाधिक लघु मध्यम व्यावसायिक इकाइयां उत्पादनरत है और वर्ष 2012-13 के दौरान उन्हें देश के घरेलू बाजार से बहुत अच्छी उम्मीद है। पंजाब के शाॅल उद्योग मंे घरेलू बाजार की हिस्सेदारी 80-85 प्रतिशत के लगभग है। इस उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम समय पूर्व सक्रिय हो जाने तथा इसके साथ ही शादी विवाह के मौसम की सक्रियता के चलते शाॅल उद्योग को अच्छी मांग देखने को मिल रही है। इसके परिणामस्वरूप उद्योग अपने पूर्व स्टाॅक को बेचने में सफल हो जाएगा। उनका कहना है कि उद्योग की कुल आय 2000 से 2500 करोड़ रूपए तक हो सकती है। इसके अलावा विस्कोस, एक्रेलिक, पाॅलिस्टर की मांग भी बढ़ रही है जो शाॅल की लागत को कम करने में सहयोगी होते हैं। शाॅल के मूल्य में अधिक वृ(ि नहीं हुई है और यही कारण है कि मांग में मजबूती देखने को मिल रही है। शाॅल क्लब अमृतसर के महासचिव श्री प्यारेलाल सेठ ने कहा कि वर्ष के दौरान सर्दियां समय पूर्व ही शुरू हो गई हैं और इसका देश के अनेक क्षेत्रों में भी प्रभाव देखने को मिल रहा है। इसके कारण देश के स्तर पर शाॅलों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा शादी विवाह के मौसम का भी इस उद्योग को सहयोग प्राप्त हो रहा है। उन्होंने बताया कि जहां तक निर्यात का प्रश्न है, निर्यात में पांच प्रतिशत तक गिरावट देखने को मिल सकती है। निश्चित रूप से यूरोपीय संकट का निर्यात मांग पर देखने को मिल रहा है लेकिन इसके बावजूद घरेलू बाजार की मांग में गतिशीलता को देखते हुए 10-15 प्रतिशत की विकास दर यह उद्योग चालू वर्ष के दौरान अर्जित कर सकता है। ऊन के अधिक मूल्य के कारण यार्न के मूल्य वर्ष के दौरान दोगुने हो गये हंै। गत वर्ष मूल्य में 600 रूपए प्रति किलो था जो अब बढ़कर 1150 रूपए प्रति किलो हो गया है। लागत को नियंत्रित करने के लिए उत्पादक शाॅल के उत्पादन में विस्कोस, एक्रेलिक, पाॅलिस्टर उत्पादों का भी उपयोग कर मूल्य को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। उत्पादकों का कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय शाॅलों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसके कारण पंजाब से निर्यात भी तेजी से बढ़ रही है लेकिन यूरोप के वित्तीय संकट के कारण गत वर्ष से ही निर्यात कमजोर स्तर पर रहा है। कुछ वर्ष पूर्व निर्यात बढ़कर 600 करोड़ रूपए हो गया था। लेकिन वर्ष के दौरान भी इसके 300 से 350 करोड़ रूपये के स्तर पर रहने की संभावना है। निर्यात बाजार में मांग अवश्य है लेकिन निर्यात बाजार में 5 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिल रही है। पंजाब की सालों का आॅस्ट्रेलिया, यूरोप, जापान, मध्यपूर्व अमेरिका को निर्यात किया जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों की पालना करने के लिए उत्पादकों ने बडे+ पैमाने पर डिजाइन पर निवेश किया है। मशीनों का आयात भी किया है। अब उद्योग के पास 350-400 शटललैस लूम हैं जबकि परम्परागत लूम्स की संख्या 2000 के लगभग है। इटालियन शटललैस लूम्स के उत्पादन में शामिल हो जाने के बाद उत्पाद की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हुआ है। इस लूम के माध्यम से कपडे+ का निर्माण उच्च गुणवत्ता के साथ होता है। उद्योग का कहना है कि उद्योग को टेक्नोलाॅजी अपग्रेडेशन एवं स्कीम का लाभ प्राप्त होना चाहिए।

                 

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