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वर्षा की कमी से कपास की बिजाई 7 लाख हेक्टेयर कम पहले सस्ता निर्यात और अब महंगा आयात सीजन के आखिर में हो सकती है किल्लत

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मिरर ब्यूरो नई दिल्ली@ इस बार देश भर में कम वर्षा की वजह से कपास की बिजाई पिछड़ गई है जिससे अगले सीजन में उत्पादन कम होने की आशंका है। यही नहीं इस बार निर्यात अधिक होने से सीजन के अंत में कपास की किल्लत होने की संभावना को देखते हुए घरेलू बाजार में कपास के भाव तेजी की ओर अग्रसर हो रहे हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में घरेलू बाजार की तुलना में कम है जिससे आयात में पड़तल शुरू हो गई है। इस प्रकार पहले सस्ता निर्यात हुआ और अब महंगे दाम पर आयात करना पड़ रहा है। घटती उपलब्धता को देखते हुए विश्व के दूसरे नम्बर के उत्पादक देश भारत को अब आयात करना पड़ रहा है। इस बार देश भर में कमजोर मानसून के चलते वर्षा की कमी की वजह से कपास की बिजाई 7 लाख 24 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पीछे चल रही है। अब तक 97.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बिजाई हो पाई है जबकि गत वर्ष की समान अवधि तक 104.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई सम्पन्न हो चुकी थी। दूसरी ओर आवक कम होने तथा टेक्सटाइल मिलों की मांग बढ़ने से कपास के भाव तेजी की ओर अग्रसर हैं। घरेलू बाजार की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कपास के दाम कम होने से आयात में पड़तल आ रही है जिससे अब मिलें कपास का आयात कर रही हैं। उद्योग सूत्रों का कहना है कि कपास का उत्पादन वर्तमान सीजन में अनुमान से कम होने तथा निर्यात अधिक होने की वजह से इस बार केरी फाॅरवर्ड स्टाॅक नगण्य रहने की वजह से आने वाले दिनों में देश में कपास की किल्लत हो सकती है। कृषि मंत्रालय से प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार कमजोर मानसून की वजह से प्रमुख उत्पादक राज्य-गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं कर्नाटक में कपास की बिजाई पिछड़ गई है। दूसरे और तीसरे नम्बर के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र एवं आंध्र में बिजाई गत वर्ष की तुलना में अधिक हुई है लेकिन वहां पर वर्षा की कमी की वजह से फसल को नुकसान हो रहा है। महाराष्ट्र में 38.77 लाख हेक्टेयर में बिजाई हो चुकी है जो गत वर्ष की तुलना में 1.98 लाख हेक्टेयर अधिक है। आंध्रप्रदेश में 16.14 लाख हेक्टेयर में बिजाई हो चुकी है जो गत वर्ष से 1.17 लाख हेक्टेयर अधिक है। गुजरात में अब तक 19.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई हो पाई है जो गत वर्ष के 25.80 की तुलना में 5.97 लाख हेक्टेयर कम है। हरियाणा में 5.15 लाख हेक्टेयर में बिजाई हुई है जो गत वर्ष की अपेक्षा 83 हजार हेक्टेयर कम है। पंजाब में 5.16 लाख हेक्टेयर में बिजाई हुई है और यहां भी गत वर्ष की अपेक्षा 59 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पीछे है। राजस्थन में मात्र 3 लाख हेक्टेयर में बिजाई हो पाई है जो गत वर्ष की तुलना में 1.39 लाख हेक्टेयर कम है। मध्यप्रदेश में 5.97 लाख हेक्टेयर में बिजाई हुई जो गत वर्ष से 50 हजार हेक्टेयर कम है। कर्नाटक में 1.83 लाख हेक्टेयर में बिजाई हुई है और यह गत वर्ष की अपेक्षा 1.19 लाख हेक्टेयर पीछे है। कैरी फाॅरवर्ड स्टाॅक नगण्य ः बहरहाल वर्षा की कमी की वजह से बिजाई कम होने से कपास का उत्पादन एवं उत्पादकता घटने की आशंका है। दूसरी ओर इस वर्ष उत्पादन अनुमान से कुछ कम बैठने तथा सीजन के आखिर में कैरी फाॅरवर्ड स्टाॅक नगण्य रहने एवं टेक्सटाइल मिलों की मांग बढ़ने से कपास के भाव तेजी की ओर अग्रसर है। इस समय भाव 38000@39000 रुपए प्रति कैंडी के हो गए हैं। यही नहीं सीजन के अंत में कपास की किल्लत होने का भी डर है। इसलिए कपास में आयात शुरू हो गया है। घरेलू बाजार की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कपास के भाव काफी सस्ते हैं जिससे आयात में पड़तल है। टेक्सटाइल उद्योग सूत्रों के अनुसार इस बार आयात 15 लाख गांठ से अधिक पहुंच सकता है जिसमें से 8-10 लाख गांठ के सौदे होने की खबर है। अंंतर्राष्ट्रीय बाजार में काॅटन इण्डेक्स 82.35 सेंट प्रति औंस चल रहा है तथा न्यूयार्क में काॅटन के अक्टूबर 2012 के सौदे 69.55 सेंट प्रति औंस के हुए हैं। कपड़ा उद्योग महासंघ के महासचिव श्री डी के नायर के अनुसार यह तो होना ही था। इस बार कपास का उत्पादन कृषि मंत्रालय के अनुमान 352 लाख गांठ ;प्रति गांठ 170 किलोद्ध से कम बैठेगा। कपास सलाहकार बोर्ड का उत्पादन अनुमान 340 लाख गांठ के हिसाब से भी सीजन के आखिर में कपास का स्टाॅक नगण्य रहने की संभावना है। पिछले सीजन का 40 लाख का कैरी फारवर्ड स्टाॅक मिलाकर वर्तमान सीजन के लिए कपास की कुल उपलब्धता 380 लाख गांठ बैठती है जिसमें से इस बार 135 लाख गांठ के आसपास निर्यात हो चुका है। मिलों की घरेलू खपत 252 लाख गांठ से अधिक होगी। इस प्रकार कुल खपत 387 लाख गांठ से अधिक बैठती है। अब यदि 15 लाख गांठ का आयात भी हो जाता है तो भी सीजन के अंत में कैरी फारवर्ड स्टाॅक नगण्य रह जाएगा।

                 

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