आॅर्गेनिक परिधान उत्पादों की नजरें अब किड्स वियर श्रेणी पर भी
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नई दिल्ली/ वयस्क आॅर्गेनिक परिधान श्रेणी बेशक रफ्तार नहीं पकड़ रही है लेकिन किड्सवियर आॅर्गेनिक परिधान श्रेणी बूम पर बनी हुई है। ग्रोन स्टाॅकहोम इण्डिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार भारत आॅर्गेनिक कपास का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कुल उत्पादन में से कुछ यूरोपीय देशों को निर्यात किया जा रहा है। कुछ इन्टरनेशनल लेबल्स के लिये फिनिश्ड गारमेण्ट्स का भी निर्यात किया जाता है। गौरतलब है कि आॅर्गेनिक काॅटन को बिना रसायन का उपयोग किये पैदा किया जाता है और इसकी गुण्वत्ता बेहतरीन होती है। हाल ही में उन्होंने अन्र्तराष्ट्रीय रिटेल ब्राण्ड ग्रोन स्टाॅकहोम से समझौता किया है। यह ब्राण्ड आॅर्गेनिक किड्स वियर में विशेज्ञता रखता है। भारतीय बाजार में इस ब्राण्ड को उपलब्ध कराने के मकसद से यह समझौता किया गया है। भारत में क्योंकि किड्स वियर बाजार में तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में आॅर्गेनिक किड्स वियर श्रेणी को बढ़ावा दिया जा रहा है।
उनका कहना है कि जब उन्होंने देश में प्रवेश लिया तो आॅर्गेनिक वियर के बारे में बहुत कम जागरूकता थी पर अब मांग गति पकड़ रही है। आने वाले एक वर्ष में ग्रोन स्टाॅकहोम इण्डिया देशभर में 15 स्टोर खोलने का विचार कर रही है। इनके इन-हाउस ब्राण्ड्ज में गीमामोजा, मिज, बैम्बू बेबी, ग्रोन आदि शामिल हैं।
टेक्नोवा के शोध के अनुसार बेबी केयर सेगमेंट बढ़ रहा है। भारतीय परिवारों की उपयोग हेतु आय बढ़ रही है। प्रति परिवार बच्चों की संख्या अब कम हो रही है और ऐसे में माता-पिता उन पर ज्यादा खर्च करते हैं। इसलिये पीजन, चीकू जैसे ब्राण्ड्स भारत में प्रवेश कर चुके हैं और बेहतर गति पकड़ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय किड्स ब्राण्ड्स नये उत्पादों के साथ माता-पिता व बच्चों को आकर्षित कर रहे हैं। इसमें बहुत योगदान वस्त्रों का भी होता है इसलिये आॅर्गेनिक परिधानों को फोकस किया जा रहा है।
नीनो बैमबीनो के निदेशक के अनुसार खेती में रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे जो कपास उत्पादित होती है, वह त्वचा पर संक्रमण करती है। बच्चों की त्वचा क्योंकि बेहद संवेदनशील होती है, ऐसे में यदि आॅर्गेनिक काॅटन से बने वस्त्र उन्हें पहनाये जायें तो काफी लाभ होगा। आॅर्गेनिक परिधानों में जो बटन काम लिये जाते हैं, वे भी निकल फ्री होते हैं।
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