यार्न मंे लौटा विश्वास ः कई किस्मों के भाव सुधरे
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मंुबई/ यार्न में कामकाज साधारण रहा है। अब आगे कुछ समय बाद बाजार के अच्छा होने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं। हालांकि यार्न की कुछ किस्मों के भाव जरूर सुधरे है, परंतु इन भावों पर ग्रे कपड़ों का उत्पादन करने से वीवर्स पीछे हट रहे हंै। पिछले 10 दिनों से काॅटन यार्न में 40 काउंट और 60 काउंट के यार्न में प्रति 5 किलो 100 रूपए तक का सुधार हुआ है, जिसे बाजार पचा नहीं पा रहा है। वीवरों का कहना है कि इस भाव पर यार्न की खरीदी कर उससे बने ग्रे कपड़ों की लागत काफी ऊंची जायेगी और इन कपड़ों को बाजार में बेचना कठिन हो सकता हंै।
तुर्की ने 31 दिसम्बर 2012 को भारत से आयात हुए काॅटन यार्न पर से सेफगार्ड शुल्क को वापस ले लिया हैं। तुर्की ने 15 जुलाई 2012 को भारत से आयात किये जाने वाले सूती धागों पर सेफगार्ड शुल्क लाद दिया था। उसके बाद भारत सरकार ने मध्यस्थता की और तुर्की ने इस शुल्क को वापस ले लिया है। रूई और सूती यार्न का सबसे अधिक निर्यात करने वाले देशों के बीच में भारत की गणना की जाती हैं। 31 मार्च 2012 को समाप्त हुए वर्ष में भारत ने 82.80 करोड़ किलो यार्न के निर्यात किये हंै।
काॅटन यार्न में पहले से ही तेजी है, अब सिंथेटिक यार्न में उसी तरह के संयोग बनते दिख रहे हैं। कुछ स्पिनरों ने बाजार में उन यार्न के भाव में एक से दो रूपए तक भाव बढ़ा दिये है, जिसमें वीवर्सों की मांग रहती आ रही है। वहीं इंटरनेशनल बाजार में पीटीए एवं एमईजी के भाव मजबूत हैं, इससे स्थानीय बाजार में सिंथेटिक यार्न के भाव स्थिर हो गये हैं। लेकिन जैसे ही कच्चे माल के भाव बढ़ते है वैसे ही इसका असर सिंथेटिक यार्न पर पड़ेगा और सिंथेटिक यार्न के भाव बढ़ सकते हैं।
जानकारों का कहना है कि वीवर्सों के पास अब पुराना स्टाॅक नहीं रह गया है। पाइप लाइन पूरी तरह से खाली हो चुकी है। लूमों पर कारीगरों की कमी है। रेडीमेड कारखानों की कपड़ों की मांग बढ़ी है। इसे देखते हुए भले ही इस समय ग्रे कपड़ों में कामकाज कमजोर है, परंतु वीवर्सों की उन यार्न में मांग बनी रही है जिसमें ग्रे कपड़ों की मांग रही है। अब क्रिसमस का वेकेशन पूरा होने के बाद अमेरिका एवं यूरोप के बाजारों से कपड़ों की निर्यात मांग रहने वाली है। खाड़ी देशों की मांग निकल चुकी है। अतः यार्न बाजार में न केवल स्थानीय बल्कि निर्यात में अच्छे कारोबार होने की आशा बढ़ी है।
अब तक यार्न बाजार में विश्वास का अभाव दिखाई देता था। स्टाॅकिस्टों और व्यापारियों दोनों में बाजार को लेकर असमंजस की स्थिति रही है। बाजार में आर्थिक संकट लंबे समय से चल रहा था। इसके साथ ही फिनिश माल में किसी तरह की ऐसी मूवमेंट की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी जिससे बाजार में विश्वास की बहाली हो सके। आगे अच्छी सीजन के चलने की उम्मीद से उसमें सकारात्मक बदलाव दिखाई दिया है।
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