बड़े पने की शर्टिंग एवं लायक्रा कपड़ों की ओर झुकाव बढ़ा
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मंुबई/ कपड़ा बाजार में ग्राहकी के नाम पर अभी बाजार में सन्नाटा ही है। आर्थिक तंगी बढ़ने से कामकाज कमजोर है। इसके अलावा दिशावरी एवं निर्यात दोनों बाजारों से अभी तक बाजार को अनुकूल समर्थन नहीं मिला है। चूंकि इस समय वैवाहिक सीजन की बिक्री पुरजोर शुरू हो चुकी है और फैंसी मालों की पूछताछ जरूर बढी है, परंतु बाजार का आर्थिक संकट इससे कम नहीं हो सकता है, जब तक समूचे परिवेश की स्थिति में सुधार नहीं होता है। कदाचित यही स्थिति आगे चलकर बाजार की गति में अवरोधक साबित हो सकती है। यद्यपि मई तक कपड़ा बाजार के लिए अच्छी बिक्री का सीजन है। इसके साथ ही स्कूल यूनिफाॅर्म तथा गरमी के कपड़ों का सीजन भी रहने वाला हैं। बड़े पने के कपड़ों की मांग बढ़ी है। प्रोसेस हाउसों में कामकाज आधा हो गया है।
ग्रे कपड़ों का बाजार तेज हो गया है। हांलाकि उस तरह की मांग नहीं है। लेकिन यार्न बाजार की तेजी से ग्रे कपड़ों के भाव बढ़ रहे हंै। सूती कपड़ों में जो ग्रे कपड़ा अद्यतन लूमों पर बन रहा है, उसमें पिछले तीन महीने में 15 रूपये मीटर तक उछाल देखा गया है। पावरलूम कपड़ों के भाव भी बढे+ हैं। रूई के भाव नरम है, जबकि काॅटन यार्न के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं। 40 काउंट से नीचे के यार्न में कोई मांग नहीं है, परंतु 40, 50, 80 और काउंट के यार्न के भाव बढ़ने के बावजूद इनका यार्न बाजार में उपलब्ध नहीं है। कपड़ा एवं गार्मेंट की निर्यात मांग ठंडी है। इस समय बड़े पने के कपड़ों में भरपूर मांग है। प्रोसेस हाउसों में कामकाज आधी क्षमता में हो रहा है, क्योंकि यहां ग्रे कपड़ों का स्टाॅक कम है।
इस बीच इंडियन स्पिनर्स एसोसिएशन ने मेनमेड फाइबर पर एक्साइज शुल्क को घटाकर 4 प्रतिशत करने की मांग सरकार से की है। फिलहाल इस पर 12 प्रतिशत शुल्क लगता है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय को भेजे निवेदन में एसोसिएशन ने मेनमेड फाइबर के आयात पर लगती 5 प्रतिशत कस्टम शुल्क एवं 4 प्रतिशत विशेष अतिरिक्त शुल्क को समाप्त करने की मांग की है। उसका मानना है कि ऐसा करने से यह कच्चा सामान टेक्सटाइल उद्योग पर इण्टरनेशनल भाव पर मिल सकेगा।
देश में काॅटन कपड़ों का उपयोग 62-63 प्रतिशत बताया जा रहा है, जबकि मेनमेड फाइबर का 47-48 प्रतिशत है। आम जनता को इसकी गुणवत्ता के कारण ब्लेंडेड एवं सिंथेटिक कपड़े में रूचि है। वहीं इण्टरनेशनल मार्केट में 60 प्रतिशत ब्लेंडेड एवं सिंथेटिक कपड़ों का उपयोग किया जाता है। काॅटन कपड़ों के मामले में यह 40 प्रतिशत है। भारत में ठीक इसके विपरीत स्थिति है। 2011-12 में भारत से काॅटन टेक्सटाइल एवं क्लोदिंग का निर्यात 16 अरब डाॅलर की थी जबकि एमएमएफ कपड़ा एवं क्लोदिंग का निर्यात मात्र 7 अरब डाॅलर की थी। शुल्क ढांचे को तर्कसंगत किया जाता है तो मेनमेड फाइबर की मांग बढ़ेगी और उत्पादन बढेगा। इससे सरकर की शुल्क आवक घटने के बदले बढ़ेगी।
प्रोसेस हाउसों में क्षमता उपयोग इस समय घटकर 50 प्रतिशत के करीब रही है। कारण ग्रे कपड़ों की बाजार में कमी हो गई हैं। यद्यपि समय की मांग 120 एवं 130 इंच जैसे बड़े पना के ग्रे कपड़ों की रही है। लेकिन ऐसे बडे पना ग्रे कपड़ों को प्रोसेस करने की क्षमता रखने वाले के दो से तीन प्रोसेस हाउस ही थे, परंतु अब अहमदाबाद की ओर ऐसे प्रोसेस हाउस बढ़ गए हंै। जिनके पास इन कपड़ों को प्रोसेस करने की क्षमता हंै। गार्मेंट में पीच डाईंग कपड़ा के लिए 40, 50, 60, 70 और 80 काउंट के ग्रे माल आते है, जिनकी डिलिवरी मार्च तक कही जा रही है।
स्कूल यूनिफाॅर्म का बाजार शुरूआत में अस्थिर रहा था, अब यहां स्थिर में सुधार है। मिलों की सीधी बिक्री कन्वर्टरों को करने से बाजार में व्यापारियों के कारोबार पर असर पड़ता दिखाई दे रहा है। स्कूल यूनिफाॅर्म में ‘एस कुमार्स’ और मफतलाल जैसी मिलों के अलावा असंगठित क्षेत्र में बहुत सी इकाई कार्यरत है, जिनका स्कूल यूनिफाॅर्म के बाजार पर अच्छी पकड़ है। इन इकाइयों में न केवल कपड़ों की गुणव©त्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, बल्कि हरसंभव कोशिश उसे बनाये रखने की एवं समय पर माल की डिलिवरी करने की होती है। चूंकि स्कूल यूनिफाॅर्म का सीजन हमेशा से अच्छा चलता आ रहा है, कारोबारियों को इसके सीजन से बड़ी उम्मीदें रहती है।
यार्न डाईड शर्टिंग जिसमें पहले जोरदार कारोबार होता था, उसमें अब गिरावट देखी गयी है। स्ट्राइप्स का बाजार बढ़ रहा है। 100 प्रतिशत की जगह अब 30 प्रतिशत यार्न डाईड शर्टिंग में काम होने की जानकारी मिली है। चेक्स में भी बाजार का आकर्षण कम हुआ है। इसमें मिलों एवं पावरलूम दोनों के भाव में करीब करीब समानता आ गई है। यार्न डाईड शर्टिंग 40/40, 108/72, 61 इंच पने के ग्रे का भाव 98 से 102 रूपये हंै, जबकि मिलों के प्रोसेस्ड कपडे 58 इंच पने का भाव 120 से 125 रूपये है। ऐसा कहा जा रहा है कि मिल वाले इस क्वालिटी का कपड़ा पावरलूमों में बनवाकर उसे प्रोसेस्ड कर बेचती है।
इसके अलावा पाॅलिएस्टर 58 इंच पने में स्पन बाई टेक्स का भाव 85 से 120 रूपये तक है। गार्मेंट वाले लम्प शर्टिंग ही खरीदते हंै। परंतु बाजार में 1.60 मीटर कट सिंगल पीस पैकिंग बिकता है। बड़े पने में 40 सिंगल बाई 40 सिंगल काॅटन 58 इंच पने का प्रति मीटर भाव 120 से 130 रूपये तक है। इसमें 2/60 ग 40 सिंगल का भाव 140 रूपये तक है। इस समय बाजार में बड़े पने की शर्टिंग में ही कारोबार हो रहा है।
काॅटन यार्न के महंगा होने से ब्लाउज मटीरियल की लागत में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है इतना ही नहीं अब बाजार में इसके उत्पादक कम हो रहे हैं। माल की तंगी से इससेे इस समय टू बाय टू और टू बाय वन दोनों के भाव ऊंचे कोट किये जा रहे हंै। जानकारों का कहना है कि इनके भाव में 5 से 7 रूपये की हुई वृ(ि को बाजार पचा लिया है। लेकिन कोई विशेष मांग नहीं है।
लायक्रा सूटिंग एवं शर्टिंग दोनों की मांग कायम है और इसमें कारोबार की स्थिति यथावत् है। इसमें 40/30 साटिन लायक्रा, 2/40/10 लायक्रा 20/16 लायक्रा और 40/10 लायक्रा जैसी चारों क्वालिटी में मांग अपनी चरम सीमा पर बताई जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि मुनाफा अच्छा मिलने से थोक में इसके कारोबार पर विशेष जोर दिया जा रहा है। तत्पश्चात् 40/40,144/100 ट्विल की भारी मांग से बाजार में माल की कमी है। ऐसा कहा जा रहा है कि लूमों के खाली नहीं होने से इनकी डिलीवरी मार्च तक बोली जा रही हैं।
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