मेनमेड फाइबर पर से एक्साइज शुल्क घटाने की मांग
काॅटन यार्न में मार्च पूर्व कोई डिलीवरी नहीं
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मंुबई/ यार्न बाजार में कामकाज के लिहाज से विशेष कोई हलचल नहीं हंै। परंतु यार्न के रेट बढ़ने की हलचल जरूर है। यह न केवल काॅटन यार्न में देखा गया है, बल्कि टेक्सच्राइज की उन किस्मों के भाव में भी सुधार दिखाई दिया है, जिनमें बाजार की मांग रही हंै। इण्टरनेशनल बाजार में कच्चे माल के भाव पर असमंजस बना हुआ है। इसके पूर्व 15 जनवरी से पीओवाई के भाव बढ़ाये जाने से टेक्सचराइज्ड यार्न के उत्पादकों में आर्थिक संकट बढ़ गया है। बाजार में कोई विशेष उथल-पुथल की संभावना नहीं हंै, लेकिन काॅटन एवं सिंथेटिक यार्न की कुछ किस्मों के भाव सुधरे हंै।
काॅटन यार्न में बुरा हाल है। अब तक रूई की तेजी के कारण सूती यार्न के भाव ऊंचे बोले जा रहे हैं। लेकिन जब देश में रूई के भाव 33000-34000 रूपये प्रति खंडी की रेंज में चल रहे हंै, फिर भी काॅटन यार्न में चीन के भारी निर्यात आॅर्डर के कारण काॅटन यार्न में तेजी की बात कही जा रही हैं। मिलें निर्यात आॅर्डर को पूरा करने को वरीयता दे रही हैं। इसके कारण स्वदेशी बाजार में इसकी मांग एवं आपूर्ति के बीच भारी अंतर देखा जा रहा है। काॅटन यार्न में मार्च पूर्व कोई डिलीवरी नहीं मिल रही हंै। वहीं 40, 50, 60, 80 और 100 काउंट के काॅटन यार्न में मांग बढ़ी हैं। जबकि 40 काउंट से नीचे के यार्न में कोई मांग नहीं हैं।
इस बीच बंग्लादेश और चीन से काॅटन यार्न की मांग बढ़ने से काॅटन यार्न के निर्यात पंजीयन दो महीने में शीर्ष पर पहुंच गया है। चीन काॅटन यार्न का बड़ा खरीददार बन गया है। इसके अलावा पाकिस्तान, ब्राजील, तुर्की से भी आॅर्डर मिलने शुरू हो गए हैं। मिली जानकारी के अनुसार अप्रेल में 628.10 लाख किलोग्राम, जून में 824.2 लाख किलोग्राम, जुलाई में 945.1 लाख किलोग्राम तथा सितम्बर में 642.7 लाख किलोग्राम काॅटन यार्न का निर्यात करने के पंजीयन हुए हैं। जबकि उत्पादन 2009-10 में 307.90 करोड़ किलोग्राम और 2010-11 में 349 करोड़ किलोग्राम रहा है।
दूसरी ओर इंडियन स्पिनर्स एसोसिएशन और कंफेडरेशन आॅफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने बजट पूर्व अपने ज्ञापन में मेनमेड फाइबर पर से एक्साइज शुल्क को घटाने की मांग की है। साथ ही कस्टम शुल्क एवं विशेष अतिरिक्त शुल्क को समाप्त करने की मांग की गई हंै। फिलहाल मेनमेड फाइबर पर 12 प्रतिशत शुल्क लगाया जाता है। इनका कहना है कि देश में प्राकृतिक रेशे की खपत 62 प्रतिशत और मेनमेड की 38 प्रतिशत हंै, वहीं इंंटरनेशनल मार्केट में इसका उलटवार है। यहां प्राकृतिक रेशे की खपत मात्र 34 प्रतिशत एवं मेनमेड फाइबर की 65 प्रतिशत हैं।
यदि एक्साइज शुल्क कम पर की जाती है तो सरकारी तिजौरी को नुकसान नहीं होगा, उल्टे मेनमेड फाइबर आधारित टेक्सटाइल उद्योग को इंटरनेशनल बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने में मदद मिल सकती हंै। चीन में उत्पादन खर्च बढ़ रहा है। इससे चीन की इंटरनेशनल बाजार में प्रतिस्पर्धा घट रही हैं। इसका लाभ भारतीय खिलाडि़यों को तभी मिल सकेगा, जब उनके उत्पादों के भाव अनुकूल होंगे।
इस बीच यार्न बाजार में 80 रोटों का भाव 124 रूपये, 80 वेफ्ट का 121 रूपये, 80 जीएफटी का 125 रूपये, 80/72 रोटो का 125 रूपये, 150 रोटो का 116 रूपये रहा है। इसी तरह काॅटन यार्न में 42 कार्डेड वार्प 1150 रूपये, 60 कार्डेड वेफ्ट 1160 से 1200 रूपये और 62 कार्डेड वेफ्ट का 1350-1400 रूपये प्रति 5 किलो रहा है।
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