गैर परंपरागत बाजारों में गार्मेंट का निर्यात बढ़ाने की कवायद
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मुंबई/ सिले-सिलाये कपड़ों के बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत के युवाओं की पसंदगी ये सिले-सिलाये परिधान ही है। इसके मद्देनजर अब इसमें कारोबार सिर्फ सीजन आधारित नहीं रह गया है। वैश्विक रिटेलर एवं आयातक भारत को सबसे पसंदीदा सोर्सिंग केंद्र मानते हैं। इसके साथ निर्यात कारोबार अपने गति से गतिमान है, तथापि अनेक कारणों से कपड़ों की बढ़ती लागत इस प्रतिस्पर्धी जगत में चिंतनीय है। जिस गति से भारतीय टेक्सटाइल तथा एपैरल उद्योग विकास कर रहा है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2020 तक उद्योग का कद 220 अरब डाॅलर तक पहुंच जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसमें करीब 80 अरब डाॅलर का निर्यात हो सकता है।
उपर्युक्त अनुमानों पर यकीन करें तो तस्वीर साफ हो जाती है कि गार्मेंट में कारोबार की असीम संभावनाएं है। रिटेल स्टोरों पर ग्राहकी में सुधार अथवा कभी कबार कम होना कोई मायने नहीं रखता है। जानकारों का कहना है रेडीमेड कपड़ों की मांग अब हर जगह बढ़ रही है। अब दर्जियों के पास कपड़ा सिलवाने के बजाय लोगों की पसंद सिले-सिलाए कपड़ों की ओर ज्यादा है। कारण कि तैयार परिधान अब सभी साइज में आसानी से मिल रहे हैं, साथ ही ये नवीन डिजाईन और पैटर्न के होते हंै, एवं इनमें फिटिंग की समस्या नहीं होती है। अधिकांश स्टोरों में दर्जियों की भी व्यवस्था है, ताकि ग्राहक उनकी फिटिंग के अनुकूल कपड़ा तैयार कर दिया जा सके। इसकी वजह से आज करीब -करीब छोटे-बडे+ सभी विकसित शहरों में ऐसे स्टोरों की संख्या बढ़ रही है।
दूसरी ओर एपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल के अनुसार भारत के रेडीमेड गार्मेंट का वार्षिक निर्यात 75000 करोड रूपये का है। इसमें यूरोप में निर्यात का हिस्सा 50 प्रतिशत है, जिसे कम कर 40 प्रतिशत किया जायेगा। जबकि गैर परंपरागत बाजारों जैसे कि दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका, न्यूजीलैंड और जापान में करीब 10 प्रतिशत और निर्यात किया जायेगा। यूरोपीयन बाजारों में अभी मंदी चल रही है। इससे भारतीय गार्मेंट के लिए अमेरिकन बाजारों में विस्तार करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
जानकारों के अनुसार गत वर्ष अमेरिका में 17150 करोड़ रूपये का भारतीय एपैरल का निर्यात किया गया था। अमेरिका का बाजार दो भागों में बंटा हुआ है। वेस्ट कोस्ट से बेसिक एवं मिडफैशन गार्मेंट के आर्डर अधिक होते हंै, जबकि ईस्ट कोस्ट से मिडफैशन और महंगे आइटमों की मांग होती है। इसके अलावा अमेरिका में चैन स्टोर अधिक है जहां बल्क में खरीदी की जाती हैं। इससे अमेरिका में हरेक सौदों में अधिक स्टाॅक जाता है। यूएस जो एपैरल का आयात करता है उसमें करीब 8 प्रतिशत आयात वह भारत से करता है।
चीन यहां सबसे अधिक निर्यात करने वाला देश है, लेकिन चीन में अब उत्पादन खर्च और मजदूरी महंगी हो जाने से वह अग्रणी नहीं रहा है। इसके उल्टे अमेरिका में वियतनाम और कम्बोडिया जैसे देश मजबूत निर्यातक के बतौर उभर रहे हैं। भारत इसका फायदा उठा सकता है, वशर्ते उसे लागत पर नियंत्रण रखना होगा और समयब( डिलीवरी को प्राथमिकता देनी होगी।
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