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कमजोर ग्राहकी से व्यापारी उदास जीस में अच्छी डिमाण्ड

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कोलकाता/ मानव सभ्यता की सही और सुन्दर पहचान बनाने वाले कपड़े का नूर फीका पड़ रहा है। पूजा उत्सव औैर विवाह जैसे सीजन के अलावा कपड़ा बाजार सूना होता जा रहा है। हर दौर में परिवर्तन होता जा रहा है। जैसे एक समय ऐसा था जब दिन खुलते ही कपड़ा बाजारों में धोती की बड़ी जोरों से बिक्री होती थी। कई मिल के माल गोदामों तक पहुचने से पहले बिक जाते थे, धोती और कुर्ता, पजामा और कमीज अब इतिहास बन चुके हंै या क्रमस भूलते जा रहे हैं। उसके बाद शर्ट और पेण्ट का जमाना आया, होलसेल व्यापारी से दरजी तक नए प्रयोग में सफल रहे। कभी प्रिण्ट की डिमाण्ड निकल पड़ती थी। लेकिन संतोष यह होता था कि कपड़ा रंग रूप अवश्य बदलता था। बाजार में यह व्यवसाय न कभी कमजोर पड़ा न बाजारों में लम्बी उदासी देखी गई। खरीददारों के मिजाज और चाह पर बाजार का रूख बन जाता था। आज भी खरीददारों के मूड़ पर कपड़ा बाजार निर्भर करता है। समस्या यह हो गई की आज का कपड़ा खरीददार कहा खो गया है। ग्राहकी के आभाव में कपड़ा बाजार मंदी से बाहर नही निकला है पर यहां आशा की किरण यह है की एक दाम तेजी के साथ दिख रहा है जो आने वाले दिनों में टेक्सटाइल उद्योग के लिए सुनहरे दिन लायेगा। कोलकाता के 75 वर्ष से कपड़ा व्यवसाय से जुड़े फर्म में नागजी रामगोविंद एण्ड कम्पनी के कर्णधार श्री हीरालाल राजा ने मिरर को इस बाजार की अदल बदल के बारे में बताया, श्री हीरालाल राजा 45 सालों से होजियारी और कपड़ा व्यवसाय से जुडे हुए है उन्होनें काफी समय व्यापार को दिया है, उन की कपड़ा व्यवसाय के कई सगठनों में सक्रिय भूमिका रही है बाजार के उतार चढ़ाव देखे है काफी चाव से व्यापार को नई और प्रगतिशील दिशा प्रदान की है वर्तमान में वह किड्स वियर में बडे+ पैमाने पर उत्पादन और ट्रेडि़ग करते है गोद में खेलते बच्चों के लिए विशेष वेरायटी के डेªस बनवाते हैं। देशभर में उनका माल जाता है और निर्यात भी होता है। इसके अलावा दिल्ली के जिन्स के सेल का अच्छा नेटवर्क बना हुआ है। बच्चों के डेªस की मांग अब साल भर रहती है। सुन्दर, विविधता वाली डिजाइन और आकर्षक सिलाई बेबी वियर की पसंद बन चुकी है। गोद के बालक और बालिका से 2 साल तक के शिशुआंे के डेªस की भी लाजवाब रेंज बनाने लगी है और आज के आधुनिक जीवन शैली में बहुत भाती है। शोपिंग सेन्टरों और शोपिंग माॅल में अलायदा डिस्प्ले और बिक्री कि व्यवस्था दी जाती है। श्री हीरालाल राजा ने मिरर को बताया की भारतीय वस्त्रों की दुनिया भर में अपनी पहचान है। हमने दुनिया के कई नगरों में रेडिमेड कपड़ों की दुकाने देखी है। पश्चिमी देशों में चमकते शोरूमों में कपडे+ देखे अच्छे लगेे जब की खुशी इस बात की होती है की कपड़ांे के लेबल पर ज्यादातर मेड इन इण्डिया अकिंत होता है। वहां की तकनीक कुछ नयापन और कपड़ों की डिजाइन में से कुछ अपनाया जाता है लेकिन कपड़ा, सिलाई, पेकिंग और फिनिशिंग में हम आगे है। बहुत ज्यादा दामों में विदेशों में जो कपड़ा बिकता है वहीं कुछ दमदार होता है जबकि हमारे यहां सभी रेंज को ध्यान में रख के बेहतरीन से बेहतरीन कपड़े तैयार होते है । जिन्स और टी-शर्ट की मांग अब ग्रामीण विस्तारों से भी आ रही हंै। आने वाले दिनों में जिन्स की काफी और नई वैरायटी उत्पादन और निर्यात में भी देखी जायेगी। जिन्स का प्रभाव बड़ी तेजी से आगे निकल रहा है। इस पोशाक की खूबी यह है की पुरूष, महिला, बच्चें सभी जिन्स पसंद करने लगे हंै । फैशन का ट्रेण्ड भी जिन्स के नये-नये प्रयोग पर हो रहा है। सिली-सिलाई जिन्स की मांग लगातार बढ़ने की उम्मीद हंै। ग्राहकी कमजोर और सूत के दामों में नमी की वजह से सूरत के साड़ी और सलवार कमीज की मांग धीमी रही। यूनिफाॅर्म फेब्रिक में अभी भी मांग है। अब नये आॅर्डर निकलने के बाद सही चित्र सामने आएगा। दाम अभी भी स्थिर है। निटेड फेब्रिक में लुुधियाना के माल की मांग देखी गयी आगे यह फैब्रिक बिकने के सकेंत मिले हंैै। त्रिपुर का कपड़ा भी अब रेडीमेड के लिए आ रहा है। कपड़ा उत्पादकों सप्लायरों की नजर अब बजट की तरफ लगी हुई है। श्रम जीवी से उद्योगपति तक के बडे+ दायरे सिर्फ कपड़ा उद्योग ने सभंल कर सुरक्षित रहकर हालत के अनुसार जमें हुए हैं। अगर कपड़ा उद्योग को बडे+ पैमाने पर उभरने की नीति सामने आती है तो निश्चित रूप से हमारे देश को वित्तीय संकट के कंकर कभी नहीं चुभेगेे।

                 

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