लागत बढ़ने से भाव वृ(ि के आसारः सितम्बर से उम्मीदें
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इचलकरंजी/ लम्बे समय से चल रहा मंदी का दौर दिन-ब-दिन कपड़ा उत्पादक तथा कपड़ा व्यापारीयों की बढ़ती परेशानी के साथ आर्थिक नुकसान का कारण बन चुका है। ऐसी स्थिति में अधिक भादो मास आने से संकटमोचक श्री गणेशजी के आगमन की दूरीयां बढ़ गयी है। ‘सूखे में अधिक मास’ का अनुभव टेक्सटाइल क्षेत्र से जुडे+ सभी स्तर ले रहे है। अब इंतजार है, संकटमोचक श्री गणेशजी का क्योंकि उनके आगमन के पश्चात ही दुर्गापूजा, दशहरा, दीपावली जैसे बडे+े भारतीय हिन्दू त्यौंहार आते हैं। साथ ही साथ दीपावली के बाद शादी-ब्याह का मौसम भी शुरू हो जाता है।
महाराष्ट्र के विदर्भ-मराठवाडा में रूई खेती का बड़ा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में इस साल बारिश की कमी से कपास की बुआई तथा उगाई में विलंब होने वाला है। इस विलंब से कपास उत्पादन भी कम होने का अनुमान तथ्यों ने लगाया है। इन सभी विपरीत परिस्थिति का सीधा परिणाम कपास एवं यार्न के भाव पर पड़ सकता है, ऐसा जानकारों का कहना है।
दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, गैस, बिजली के बढ़े हुए भाव के कारण कपड़ा उत्पादन का खर्चा भी बढ़ गया है। इन सभी का सीधा असर कपड़े के भाव पर होने से हर तरह के कपड़े तथा रेडीमेड गारमेण्ट के भाव बढ़ सकते हैं। इससे कपड़ा बाजार आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
स्थानीय काॅटन, सिंथेटिक कपड़ा एवं रेडीमेड गारमेंट बाजार में रमजान ईद की ग्राहकी साधारण रही। ईद के दिनों में सफेद कुर्ता-पायजामा के कपड़े की ग्राहकी अच्छी रही।
इचलकरंजी टेक्सटाइल सेण्टर हाइटेक टेक्सटाइल सेण्टर की तरह विकसित हो रहा है। आज की स्थिति में करीबन 7000 रेपीयर, सल्जर, एयरजेट जैसे शटललेस लूम्स शर्टिंग, सूटिंग, डेनिम, चेक्स और अन्य नई-नई डिजाइन्स के प्राॅडक्शन में है। पिछले वर्ष कपड़े की ग्राहकी अच्छी रहने से कपड़े के दाम अच्छे रहे। इससे जाॅब पर चलाने वाले उद्यमियों को भी अच्छा जाॅब रेट मिलता था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कपड़ा बाजार में ग्राहकी कम होने से कपड़े की मांग कमजोर रही। इससे कपड़े के दाम घट गये और इसका असर जाॅब रेट पर हुआ। आज के ताजा स्थिति में रेपीयर, सल्जर का जाॅब रेट 14-16 पैसा प्रति पिक हो गया है। लेकिन इतने कम जाॅब रेट में कपड़ा उत्पादन करना उद्यमियों को मुश्किल हो रहा है। ऐसी हालत में कपड़ा उत्पादकों को भारी आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ रहा है। क्योंकि इतने कम जाॅब रेट में प्राॅडक्शन काॅस्ट भी निकलती नहीं है। सितम्बर के दूसरे सप्ताह से शायद कपड़े की मांग बढ़ सकती है, ऐसा व्यापारियों और कपड़ा उत्पादकों का अनुमान है।
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