पिछले वित्तीय वर्ष में निर्यात १५ प्रतिशत बढ़कर ८२ करोड ७६ लाख किलो
नई दिल्ली/ निर्यात बढ़ने से स्पिनिंग क्षे त्र के उत्पादन में सुधार हो रहा है। कपास की उपलब्धता बनी रहने तथा घरेलू बाजार में मांग सीमित रहने से कॉटन यार्न के भाव स्थिर हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ ने से पिछले वित्तीय वर्ष में काटन यार्न का निर्यात १५ फीसदी बढा है। जबकि चालू वित्तीय २०१२-१३ में यह ११ प्रतिशत बढ कर ९२ करोड किलो होने का अनुमान है। कपास सलाहकार बोर्ड के अनुमान के अनुसार इस साल उत्पादन ३५० करोड किलो होने का अनुमान है।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के अधीन विदेश व्यापार महानिदेशालय ;डीजीएफटीद्ध के आंकडो के अनुसार वित्तीय वर्ष २०११-१२ में देश से कॉटन यार्न के निर्यात के लिए कुल पंजीकरण ८२.७६ करोड किलोग्राम का हुआ जो इससे पूर्व वित्तीय वर्ष २०१०-११ में ७२ करोड किलोग्राम था।
कपड़ा उद्योग महासंघ के के महासचिव श्री डी के नायर के अनुसार चीन विश्व का सबसे बडा सूती धागा उत्पादक है। लेकिन वह धीरे-धीरे इस क्षेत्र से बाहर निकल रहा है, क्योंकि अब वे तैयार माल एवं वेल्यू एडेड उत्पादों खासकर ऊंची कीमत वाले उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस तरह चीनी आयातकों ने भारत के सूती धागे पर अपनी निर्भरता बढा ली गई है, जिससे भारत से कॉटन यार्न के निर्यात में बढोतरी हुई है।
चालू वित्तीय वर्ष में भी निर्यात बढ ने की संभावना है, क्योंकि विदेशों से ऑर्डर मिल रहे हैं। चालू वित्तीय वर्ष २०१२-१३ में कॉटन यार्न का पंजीकरण सात करोड किलोग्राम प्रतिमाह से अधिक रहने की संभावना है। इससे पूर्व वर्ष में सरकार ने घरेलू मांग पूरी करने के लिए कॉटन यार्न की निर्यात सीमा ७२ करोड किलोग्राम तय कर दी थी। उस समय निर्यात की वजह से घरेलू मिलों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिल पा रहा था। यह लक्ष्य वित्तीय वर्ष की समाप्ति यानी ३१ मार्च २०११ से करीब तीन महीने पहले ही हासिल कर लिया गया। इसके बावजूद सरकार ने निर्यात की अनुमति नहीं दी। वित्तीय वर्ष २०११-१२ में यार्न के निर्यात की को सीमा तय नहीं की गई थी।
इस समय बांग्लादेश, चीन, हांगकांग, कोरिया, पीरू औौर यूरोप से कॉटन यार्न का निर्यात हो रहा है। पिछलें पांच वर्षों में सूती धागे के निर्यात में बढोतरी हुईई है। रुपए में गिरावट से सूती धागे के निर्माताओं को लाभ हुआ है।