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क्या भगवान खाने को भोग लगाते हैं?
क्या भगवान खाने को भोग लगाते हैं?
किसी भी शुभ काम को करने से पहले या जीवन में आई किसी कठिनाई से छुटकारा पाने के लिए हम घर में पूजा रखते हैं तथा भगवान को भोग लगाते हैं। यह प्रथा हिंदू एवं भारत के कुछ अन्य धर्मों में एक आम बात है। माना जाता है कि पूजा के दौरान भगवान इस खाने को भोग लगाते हैं तथा बचे हुए खाने को भक्तों के बीच प्रसाद के रुप में बांटा जाता है।

लेकिन मूर्तियां ना तो हिल सकती हैं ना खा सकती हैं, तो फिर खाने को भोग कैसे लगता है? यह सवाल कई सदियों से चला आ रहा है तथा इसके जवाब में कई उदाहरण पेश किए गए हैं। कुछ श्रद्धालु दावा करते हैं कि उन्होंने खुद भौतिक रूप में भगवान को खाना खाते देखा है। उदाहरण के लिए, महान संत श्री रामकृष्ण परमहंस अपने हाथों से देवी काली को भोग का खाना खिलाते थे। उनका दावा है कि उन्होंने खुद देवी को अपने सामने एक छोटी कन्या के रुप में प्रकट होते तथा भोग के खाने को खाते देखा है।

लेकिन यह इस सवाल का एक अस्पष्ट व कल्पित विवरण है। तो चलिए पता लगाते हैं कि क्या भगवान सच में खाने को भोग लगाते हैं और क्या प्रसाद का कोई महत्व है?

विभिन्न विद्वानों के विचार डिवाइन लाइफ सोसायटी के संस्थापक स्वामी शिवानंद के मुताबिक, "अगर भोग के लिए रखे गए खाने को सच्चे मन से रखा जाए, तो कभी कभी भगवान भौतिक रुप धारण करके उसका सेवन करते हैं। परंतु अन्य मामलों में, भगवान बडे ही रहस्यमय तरीके से खाने के अंश का सेवन करते हैं तथा बाकि का खाना प्रसाद के रुप में बच जाता है।"

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, अगर भोजन सच्चे दिल से व अविचल भक्ति के साथ पेश किया जाए तो भगवान वास्तव में भौतिक रूप धारण करके उसे भोग लगाते हैं। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां लोगों ने भगवान को भोग के लिए रखे खाने को खाते देखा है।

खाने को भोग कौन लगाता है?
इस बात को समझने के लिए, हमें सबसे पहले भगवान की अवधारणा को समझने की जरूरत है। भगवान सृष्टि के हर कण में बसा है। वह मनुष्य के भीतर तथा आस-पास नजर आने वाली हर चीज में बसा है। भोग के लिए रखे गए खाने को कोई मूर्ति नहीं बल्कि इस प्रकृति के हर कण में बसा उसका रुप भोग लगाता है। वह रुप मानव के भीतर भी बसा है। इस तरह भोग का खाना प्रसाद बन जाता है तथा उसके मानव रुप द्वारा प्रसाद के रुप में सेवन किया जाता है।

प्रसाद का महत्व
भगवान के सामने भोग के लिए रखा गया खाना हमारी अज्ञान चेतना का प्रतीक है जिसे हम आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भगवान के सामने रखते हैं। जब इसे उस दिव्य शक्ति द्वारा ज्ञान व प्रकाश का भोग लगता है, तो इसे भौतिक रूप में उपस्थित मानवों द्वारा सेवन किया जाता है।

इस तरह, किसी ना किसी रुप में भगवान खाने को भोग लगाते हैं। अतः इस सब से भी अधिक भक्त की भक्ति, विश्वास, ईमानदारी व विनम्रता मायने रखती है।
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