आगामी सीजन के लिए नये पैटर्न के माल पर जोर
काॅम्बी पैक व पोस्टर रेंज को अच्छा रिस्पोंस
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मुंबई/ कपड़ा बाजार में ग्राहकी सुस्त है। एक तरफ कपड़ों की लागत ऊंची बैठ रही है और दूसरी तरफ बाजार में सीमित कारोबार जैसी स्थिति बनी हुई है। त्यौहारी ग्राहकी के चलने का इंतजार व्यापारी कर रहे हैं। अमेरिका एवं यूरोप में मंदी के चलते हमारे यहां से निर्यात कामकाज नहीं बढ़ पर रहा है और दूसरी तरफ चीन से कपड़ा एवं बंगलादेश से शुल्क मुक्त गारमेण्ट का आयात बढ़ने से कारोबारियों के हौंसले पस्त हो रहे हैं।
बाजार में रमजान की ग्राहकी फीकी साबित हुई है। कोलकाता के पूजा की ग्राहकी पर सभी की निगाहें हैं। यद्यपि कोलकाता की पूजा की खरीदी मुंबई बाजार के लिए हमेशा से साधारण ही रही है। यहां के बाजार के लिए मुख्यतया किड्स वेयर एवं लेडीज आइटमों की मांग अच्छी होती है, जिसकी बहुतायत में पूर्ति स्थानीय बाजार से ही हो जाती है। तथापि हल्के एवं मीडियम माल के लिए अच्छे संयोग बने हैं।
महाराष्ट्र की टेक्सटाइल पाॅलिसी राज्य में टेक्सटाइल मिलों की 80 दशक के पहले की उस यशस्वी गाथा को वापस लौटाने की पूरजोर कोशिश कर रही है। टेक्सटाइल मिलों की हड़ताल के कारण 80 के दशक में जो उद्योग राज्य से अन्य पडौसी राज्यों में चले गये हैं, संभवतः उनकी वापसी की प्रतीक्षा है। नई नीति को उद्योग सर्कल से जैसा समर्थन मिल रहा है, वह इस बात का संकेत दे रहा है कि टेक्सटाइल का मेनचेस्टर कहा जाने वाली कहावत चरितार्थ हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
उत्सवी ग्राहकी के साथ ही आगामी वैवाहिक सीजन को भी ध्यान में रखते हुए उत्पादक अपने उत्पादनों को बनाए हुए हैं। फिलहाल हरेक स्तर पर इस समय सूटिंग-शर्टिंग की बेहतरीन क्वालिटी तैयार की जा रही है। तैयार परिधान में कमोबेश नये पैटर्न के माल पर जोर दिया जा रहा है। साडि़यों एवं लेडीज ड्रेस मटेरियल में मूल्य एडिशन पर सबसे ज्यादा जोर लग रहा है। साडि़यों में सबसे ज्यादा सूरत की ही साड़ी बिकती है। कारण की मूल्य की दृष्टि से यहां भरपूर वैराइटी मिलती है। ऊंचे रेंज में साउथ की एवं बनारसी साडि़यां आती है, जो आमतौर पर हमेशा इस्तेमाल नहीं की जाती है।
ड्रेस मटेरियल में सीजन के मद्देनजर व्यापक तैयारी की गई है। उत्पादकों का जोर माल की आपूर्ति करने पर है। इसमें नये पैटर्न और डिजाइन का हमेशा से बोलबाला रहता है। आधुनिकता की जब बात आती है, तब मुंबई, सूरत एवं अहमदाबाद को नहीं भूला जा सकता है। इन दिनों वर्क किए गये सलवार कमीज की ओर विशेष क्रेज है। यह माल तैयार होने में भी समय लगता है। सूत्रों के अनुसार ऐसे उत्पादकों के पास अच्छी बुकिंग बताई जा रही है।
पर्दे के कपड़ों का आयातित माल बाजार में नहीं है। लेकिन स्वदेशी देशी मिलों के पास इनके प्रोग्राम भी कम बताये जा रहे हैं। जिन मिलों के पास पुराना स्टाॅक बचा हुआ है, वे उनको लोट में बाजार में बेच रही है। इन दिनों भिवंडी के पावरलूमों पर मिलों के समकक्ष की क्वालिटी बनने लगी है और यह माल मिलों के भाव से करीब 30 प्रतिशत तक सस्ता पड़ने से व्यापारी यहां से ग्रे खरीद कर उसकी प्रोसेसिंग तारापुर में कराकर बेचते हैं। फिलहाल इसमें प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
बेडशीट्स में अच्छी ग्राहकी है। मिलों के पास प्रोग्राम भी खूब बताये जा रहे हंै। सूती शीटिंग के भाव 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़कर बोले जा रहे हैं। बाजार में अनब्रांडेड बेडशीट्स अधिक बिकती है। इस पर 12.30 प्रतिशत एडबोलरम वैट लगने तथा 10 प्रतिशत एक्साइज लगने से बाॅम्बे डाइंग एवं वेलस्पन जैसी मिलें ब्रांड से बाहर होती जा रही है। दूसरी समस्या बड़ा पना के प्रोसेस हाउसों का है। डोम्बीवली एवं नवी मुंबई के प्रोसेस हाउसों के बंद होने से बड़ा पना के प्रोसेस के लिए अहमदाबाद जाना पड़ता था। वहां भी प्रदूषण को लेकर संकट है। इससे बाजार में इसका उत्पादन ही कम हो गया है।
सूटिंग में आगामी सर्दी की सीजन के लिए वूलन सूटिंग के उत्पादकों रेमंड, दिग्जाम, रीड एण्ड टेलर इत्यादि की बुकिंग शुरू है। बाजार में यह माल जल्दी ही आने वाला है। जबकि अन्य मिलों के माल में भी त्यौहारी एवं वैवाहिक सीजन को ध्यान में रखकर व्यापारी माल मंगाना शुरू कर दिये हंै। इन दिनों सूटिंग में सेल्फ डिजाइनों की भरमार है। जिन मिलों में सूटिंग-शर्टिंग का काॅम्बी पैक आ रहा है, ऐसे माल को अधिक पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा पोस्टर रेंज को तरजीह दी जा रही है। बेलमोण्ट ने शर्टिंग की नई रेंज बाजार में उतारी है। इन दिनों शर्टिंग में यार्न डाइड चेक्स के अलाव प्लेन एवं सोबर रेंज की नई वैराइटी की मांग बढ़ रही है।
भिवंडी में वीवरों को उनके उत्पादित ग्रे कपड़ों की कीमत नहीं मिल रही है। यार्न की सट्टेबाजी के चलते इन वीवरों की हालत पतली हो गई है। जहां स्पिनर्स यार्न का भाव मनमानी ढंग से बढ़ाकर मुनाफा कमा रहे हंै, वहीं पावरलूमों पर बुनकरों को मजदूरी नहीं निकल रही है। ग्रे कपड़ों को उत्पादन से कम भाव पर बेचना पड़ रहा है। ग्रे कपड़ों की कोई विशेष ग्राहकी नहीं है। बाजार एकदम सूना पड़ा है। प्रोसेस हाउसों की मांग भी शिथिल हो जाने से बुनकर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
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